भारत भ्रष्टाचार सर्वेक्षण २०१९


  • • पिछले १२ महीनो में ५१% नागरिकों ने रिश्वत दी है; संपत्ति पंजीयन, पुलिस व नगरपालिका सर्वोच्च क्षेत्र जहाँ रिश्वत माँगी जाती है

नवम्बर 27, २०१९, दिल्ली: भारत में भ्रष्टाचार पिछले कुछ दशकों से रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन गया है| जन्मत सुविधाओं के लिए व्यवस्था आने से केंद्रीकृत सेवाएं जैसे पासपोर्ट बनवाना या रेल का टिकट खरीदने के लिए भ्रष्टाचार कम हो गया है हुआ है पर राज्य एवं स्थानीय स्तरों पर नागरिक सेवाएँ आज भी रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के झटकों से बचे हुए नहीं है

ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल के के तत्वाधान में लोकल सर्कल्स ने भारत भ्रष्टाचार सर्वेक्षण २०१९ संपन्न किया है जिससे देश में भ्रष्टाचार का स्तर पता चल सके और उस पर नागरिकों की मनोभावना का पता लगाया जा सके|यह सर्वेक्क्षण लगातार तीन वर्षों तक आयोजित किया गया और 'भारत भ्र्ष्टाचार सर्वेक्षण २०१९' की विस्तारयुक्त रिपोर्ट में संकलित है| राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रश्नों के उत्तर में लगभग १९०००० प्रतिक्रियाएं आयी|१२०००० से अधिक प्रतिक्रियाएं राष्ट्रीय और ७०००० प्रतिक्रियाओं से अधिक राज्य सर्वेक्षण से आयी|

ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल द्वारा प्रकाशित भ्रष्टाचार अनुसूची सूचकांक २०१८ में भारत की श्रेणी पिछले वर्ष के मुकाबले ३ स्थानों से ऊपर आई है और अब हम १८० देशों में ७८वे पायदान पर खड़े हैं|२०१८ के सर्वेक्षण के अनुसार,५६% नागरिकों ने कहा कि उन्होंने रिश्वत दी है,जबकि इस वर्ष के सर्वेक्षण में नागरिको द्वारा स्पष्ट और अस्पष्ट रूप से दी जाने वाली रिश्वत में प्रत्यक्ष और निर्दिष्ट गिरावट आयी है|पिछले १२ महीनो में नागरिको द्वारा दी गई रिश्वत की संख्या ५१% है|

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम २०१८ के अनुसार रिश्वत देने पर ७ वर्ष तक की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं| २४% नागरिकों ने यह स्वीकार किया कि पिछले १२ महीनो में उन्होंने रिश्वत दी है और २७% ने एक या दो बार रिश्वत दी है|१६% ने बिना रिश्वत दिए ही काम निकलवा लिया जबकि ३३% ने यह कहा कि उन्हें कोई आवश्यकता नहीं हुई

नकद ही रिश्वत देने का प्राथमिक माध्यम है जिसमे ३५% नागरिको ने अपना कार्य करवाने के लिए रिश्वत दी|३०% ने यह कहा कि उन्होंने अस्पस्ट रूप से एक अभिकर्ता के माध्यम से रिश्वत दी और ६% ने कहा कि उन्होंने तोहफों और अन्य प्रकार से रिश्वत दी|२९% ने यह कहा कि उन्हें रिश्वत देने की आवश्यकता नहीं पड़ी|

जब सरकारी कार्यालयों में यह पूछा गया कि जहाँ उन्होंने पिछले १२ महीनो में रिश्वत दी कि वहां की कार्यप्रणाली कैसी है तो १६% लोगों ने कहा कि वह कम्प्यूटरीकृत है और वहाँ कार्यात्मक कैमरे हैं, २८% ने कहा कि वह कम्प्यूटरीकृत है पर वहाँ कोई/कार्यात्मक कैमरे नहीं हैं जबकि १९% ने कहा कि कार्यालय सम्पूर्ण तरीके से कागज़ी है|३७% ने कहा कि उन्हें रिश्वत देने की आवश्यकता नहीं पड़ी|

३८% ने कहा कि रिश्वत देना एकमात्र तरीका है जिससे कार्य समपन्न करवाया जा सके जबकि २६% ने कहा कि बिना रिश्वत दिए कार्य सम्पन्न होने में विलम्ब हो जाता है।३७% ने कहा कि उन्हें रिश्वत नहीं देनी पड़ी|

मत में ६% लोगों ने कहा कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन ने पिछले १२ महीनो में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कदम उठाये हैं कारगर साबित हुए हैं, जबकि ३४% ने यह कहा कि कदम तो उठाये गए हैं पर वह व्यापक रूप से असमर्थ रहे हैं|४८% ने कहा कि कदम उठाये ही नहीं गए हैं|

पिछले वर्ष वित्त मंत्रालय में केंद्रीय सरकार ने उन कर्मचारियों को निलंबित किया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे| सीबीआइसी और सीबीडीटी में भी यही हुआ जिससे यह साबित होता है कि सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जायेगा|यह अनिवार्य है कि विभिन्न राज्य सरकार मुकदमा दर्ज कराएं ताकि दोषी कर्मचारियों को कड़ी से अलग किया जा सके।संपत्ति पंजीयन और भूमि मामलों में सबसे अधिक रिश्वत दी गई जिसे २६% वोट मिले| १९% ने कहा पुलिस,१३% ने कहा नागरपालिका,३% ने बिजली विभाग,१३% ने परिवहन कार्यालय,८% ने कर विभाग और ५% ने जल विभाग के लिए वोट किये| १९% ने कहा कि उन्होंने अन्य प्राधिकारियों में रिश्वत दी।

१७% नागरिको का यह मानना है कि कर सम्बन्धी मामलों में रिश्वतखोरी पिछले १२ महीनो में कम हुई है जबकि ६% ने कहा है कि यह बढ़ी है|३८% ने कहा है कि यह पहले जैसे चल रही है और ३३% ने कहा कि उन्हें रिश्वत देने की आवश्यकता नहीं पड़ी|

केवल १२% नागरिकों का मानना है कि संपत्ति पंजीयन और भूमि मामलों में पिछले १२ महीनो में रिश्वतखोरी कम हुई है| ४९% का मानना है कि रिश्वतखोरी पहले जैसे प्रचलित है और ८% का कहना है कि इसमें बढ़ोतरी हुई है|९% का कहना है कि उन्हें कभी रिश्वत नहीं देनी पड़ी|

जब नगरपालिका या स्थानीय निकायों में काम के लिए रिश्वत देने की बात आती है तो १०% का कहना है कि वह कम हुई है जबकि ४४% का कहना है कि यह पहले जैसी प्रचलित है|१३% का कहना है कि रिश्वतखोरी बढ़ी है जबकि १३% का कहना है कि उन्हें पिछले वर्ष रिश्वत देने की आवश्यता नहीं पड़ी|

१९% नागरिको का कहना है कि आरटीओ मामलों में रिश्वतखोरी कम हुई है जबकि ३७% का कहना है कि वह पहले जैसी है|९% का कहना है कि वह बढ़ी है जबकि १४% लोगो को रिश्वत देने की आवश्यकता नहीं पड़ी|

११% ने कहा कि पुलिस की रिश्वतखोरी कम हुई है जबकि ११% का मानना है कि वह बढ़ी है|४२% का मानना है कि वह पहले जितनी है|सर्वेक्षण के अनुसार सम्पत्ति पंजीयन और भूमि विवाद, पुलिस और नगर पालिका सर्वाधिक भ्रष्टाचार पीड़ित विभाग हैं|

दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, ओडिशा और गोवा वे राज्य हैं जहाँ नागरिको ने भ्रष्टाचार के कम उदाहरण बताये जबकि राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड और पंजाब में नागरिको ने भ्रष्टाचार के अधिक मामले सूचित किये|

ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल के तत्वाधान में लोकल सर्कल्स ने भारत के ऑनलाइन भ्रष्टाचार-निरोध समुदाय "टुगेदर अगेंस्ट करप्शन" की मेज़बानी की, जोकि भारत में होने वाले किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार पर चर्चा करने के लिए सबसे बड़ा रंग-मंच है|किसी के सामने यदि भ्रष्टाचार की समस्या आती है या वह भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जानकारी रखता है तो वह http://bit|ly/fight-corruption-together द्वारा समुदाय में अधिगम कर सकता है|

पिछले वर्ष के ५६% के मुकाबले, इस वर्ष रिश्वत देने वाले नागरिको की प्रतिशत ५१% हो गई है। यह संख्या २०१७ में ४५% थी| ऑनलाइन समुदाय "टुगेदर अगेंस्ट करप्शन" में नागरिकों के वाद विवाद का पुनरीक्षण करने पर यह प्रत्यक्ष है कि २०१७ में नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार में गिरावट आई है क्योंकि वर्ष के कुछ समय तक लोगों के पास देने के लिए नकद उपलब्ध नहीं था| हालांकि २०१८ के ५६% से २०१९ के ५१% तक आना आशावादी प्रचलन है बिना किसी बाहरी मध्यवर्ती के|

पिछले वर्ष के ५८% के मुकाबले इस वर्ष ६१% ने कहा कि उनके राज्य में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की सूचना देने के लिए कोई कार्यात्मक सुविधा नहीं है|इससे यह प्रत्यक्ष है कि राज्य कोई प्रयास नहीं कर रहे जिससे नागरिक भ्रष्टाचार के मुद्दों की सूचना दे सकें।

पिछले २ वर्ष की तरह ही नकद ही रिश्वत देने का अनुकूल माध्यम है| हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में देखें तो २०१९ में २०१८ के मुकाबले नकद में दी गई रिश्वत कम हुई है जबकि किसी अभिकर्ता या अन्य प्रकार से दी गई रिश्वत बढ़ी है|

कम्प्यूटीकरण सरकारी कार्यालयों में जारी है परन्तु इस वर्ष के सर्वेक्षण से यह प्रत्यक्ष है कि कार्यप्रणाली के कम्प्यूटीकरण के बाद भी रिश्वतखोरी प्रचलित है|पिछले वर्ष १३% की तुलना में इस वर्ष १६% नागरिकों ने कहा कि उन्होंने कम्प्यूट्रीकृत सरकारी कार्यालयों में रिश्वत दी जहां कैमरे भी कार्यात्मक हैं|

ज़बरदस्ती रिश्वत लेने की घटनाएं कम नहीं हो रही और कुल रिश्वत का एक बड़ा हिस्सा है| वह नागरिक जो यह मानते हैं कि रिश्वत के बिना काम नहीं हो सकता उनकी संख्या २०१८ में ३६% से २०१९ में ३८% हो गई|और जिन्होंने अपना काम जल्दी करवाने के लिए रिश्वत दी उनकी संख्या पिछले वर्ष २२% से इस वर्ष २६% हो गई|

यह सर्वेक्षण यह भी दिखाता है कि अधिकतर राज्य सरकारें भ्रष्टाचार कम करने के लिए मज़बूत और प्रभावशाली कदम उठाने में असक्षम रही हैं| जो नागरिक यह सोचते थे कि राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावशाली कदम उठाये हैं उनकी संख्या पिछले वर्ष ९% के मुकाबले इस वर्ष ६% है और जिन लोगो का मानना है कि कोई कदम नहीं उठाये गए वे ४८% हैं|

जनांकिकीय

राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सवालों के प्रति लगभग १,९०,००० प्रतिक्रियाएं आई। लेने वालों में ६४% पुरुष और ३६% महिलाएं हैं| कुल भाग लेने वालों में ४९% श्रेणी १ के शहरों से, ३३% श्रेणी २ शहरों से और १८% श्रेणी ३ शहरों से व ग्रामीण क्षेत्रों से हैं|

लोकल सर्कल्स के बारे में

लोकल सर्कल्स सोशल मीडिया को एक अलग स्तर पर ले जाता है और उसे समुदाय, सञ्चालन और उपयोग के लिए बनाता है| यह नागरिकों को शहरी रोजमर्रा के जीवन से जोड़ता है जिसमे पड़ोस, चुनाव-क्षेत्र, शहर, सरकार, अभिप्राय, रुचि और ज़रूरतें, सूचना या सहायता लेना; जब आवश्यक हो, भिन्न उपक्रमों के लिए आगे आना और अपना शहरी जीवन सुधारना शामिल हैं| लोकल सर्कल्स नागरिकों के लिए निःशुल्क है, और सदैव रहेगा|

मीडिया संपर्क: अक्षय गुप्ता फ़ोन 9953475585, ईमेल: media@localcircles.com

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल भारत के बारे में

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल एक प्रमुख, गैर -राजनीतिक, स्वतंत्र, गैर-सरकारी, भ्रष्टाचार-निरोध संगठन है|इस संगठन के पास व्यापक निपुणता और भ्रष्टाचार के मामलों की समझ है|

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